हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, क़ुम अल मुक़द्देसा मे रहने वाले भारतीय शिया धर्मगुरू, कुरआन और हदीस के रिसर्चर मौलाना सय्यद साजिद रज़वी से हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के पत्रकार ने हज़रत ज़ैनब (स) के जन्मदिवस के अवसर पर हज़रत ज़ैनब की शख्सियत और उनके कारनामो से संबंधि एक इंटरव्यू किया। इस इंटरव्यू को अपने प्रिय पाठको के लिए प्रस्तुत किया जा रहा हैः
हौज़ा न्यूज़ एजेंसीः जनाबे ज़ैनब (स) का संक्षिप्त परिचय कराएँ?
शोधकर्ता मौलाना साजिद रज़वीः आपका जन्म 5 जमादी-उल-अव्वल, सन 5 हिजरी में मदीना मुनव्वरा में हुआ। वह घर जहाँ आप पैदा हुईं, वही घर था जहाँ कुरआन की आयतें उतरती थीं आपके पिता थे अमीर-उल-मोमिनीन इमाम अली (अ) और माता थीं सैय्यदा फ़ातिमा ज़हरा (स)। आप नबूवत और विलायत, दोनों के मिलन का नूर थीं, यानी रसूल की नातिन और अली (अ.स.) की बेटी।
हौज़ा न्यूज़ एजेंसीः आपका नाम किसने रखा और उसका क्या अर्थ है?
शोधकर्ता मौलाना साजिद रज़वीः जब पैग़ंबर-ए-इस्लाम (स) को आपकी पैदाइश की ख़बर दी गई तो उन्होंने फ़रमाया:
“इस बच्ची का नाम ज़ैनब रखो, क्योंकि यह अली के लिए ज़ीनत है।”
ज़ैनब शब्द का मतलब है “बाप की ज़ीनत”, यानी वह जो अपने पिता के लिए सम्मान और गर्व का कारण बने।
हौज़ा न्यूज़ एजेंसीः जनाबे ज़ैनब (स) की बचपन और आपकी सबसे बड़ी विशेषता क्या थी?
शोधकर्ता मौलाना साजिद रज़वीःआपका बचपन ऐसे घर में बीता जहाँ इल्म, इबादत, अदब और पाकीज़गी का समंद्र बहता था। आपने अपने नाना को नमाज़ में देखा, अपनी माँ को दुआ में रोते देखा और अपने बाबा को क़ुरआन की तिलावत करते सुना। यही परवरिश आपको “इल्म की वारिसा” बना गई। आप में इल्म-ए-अली, सब्र-ए-हुसैन, हया-ए-फ़ातिमा और शुजाअत-ए-हैदरी का संगम था। आपने अपने जीवन से यह साबित कर दिया कि औरत का असली सौंदर्य उसकी हिम्मत, समझदारी और ईमानदारी में है।
हौज़ा न्यूज़ एजेंसीः करबला के मैदान में आपका क्या भमिका थी?
शोधकर्ता मौलाना साजिद रज़वीः करबला में जनाबे ज़ैनब (स.अ.) सिर्फ़ बहन या बेटी नहीं थीं, बल्कि हक़ की आवाज़ की निगहबान थीं। इमाम हुसैन (अ.स.) की शहादत के बाद आपने उनके मिशन को ज़िंदा रखा, बच्चों और बीमारों की हिफ़ाज़त की और इस्लाम के पैग़ाम को दुनिया तक पहुँचाया।
हौज़ा न्यूज़ एजेंसीः कूफ़ा और शाम के दरबारों में आपने क्या कहा?
शोधकर्ता मौलाना साजिद रज़वीःआपने ज़ालिमों के दरबार में बेख़ौफ़ खड़े होकर फ़रमाया:
“मा रायतु इल्ला जमीला”
“मैंने इस क़ुर्बानी में सिवाय ख़ूबसूरती के कुछ नहीं देखा।”
यह वाक्य सिर्फ़ सब्र नहीं, बल्कि इमान और मारिफ़त के सबसे ईमान के सब से ऊंचे दर्जे का बयान है।
हौज़ा न्यूज़ एजेंसीः आज की औरत जनाबे ज़ैनब (स) से क्या सीख सकती है?
शोधकर्ता मौलाना साजिद रज़वीः उनसे सीख सकती हैं कि सच्चाई के रास्ते पर डर की कोई जगह नहीं। औरत अगर ज़ैनबी हो जाए तो वह हर मुश्किल को मात दे सकती है। सब्र, इल्म, हया और हक़ के लिए आवाज़ उठाना, यही ज़ैनबी पैग़ाम है।
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